हमारे देश ने ब्रिटिश हुकूमत से आजादी लेने के लिए तमाम तरह की यातनाएं झेली थी. आखिरकार साल 1947 में भारत ब्रिटिश हुकूमत के शासन से आजाद हुआ. इस आजादी को हासिल करने के लिए ना जाने कितने लोगों ने अपनी कुर्बानी दी. ना जाने कितने लोगों ने अपना और अपने परिवार का खुद ही अंत करना बेहतर समझा बजाए अंग्रेजों की हुकूमत के सामने झुकने के. आजादी के बलिदान की बात आती है तो हमारे जहन में भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस से लेकर महात्मा गांधी तक के सारे नायक उभरकर आते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे. जो आजादी के समय काफी तत्परता से डटे रहे, लेकिन उनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इन्हीं में से एक हैं आजादी के गुमनाम क्रांतिकारी जतिंद्रनाथ दास.
आजादी के लिए खूब झेली यातनाएं
जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष काम नहीं किया था. उन्होंने आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के सामने कई तरह की यातनाएं झेली थी, लेकिन इसके बावजूद अफसोस की बात है कि इस क्रांतिकारी को बारे में ज्यादा लोग जानते नहीहैं. 27 अक्टूबर 1950 को कोलकाता में जन्मे जितेंद्रनाथ दास ने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 63 दिनों का अनशन किया था. जेल में किए गए इस के अनशन से ब्रिटिश सरकार काफी परेशान हो गई थी. अनशन के समय ने साल 1925 में काकोरी कांड में गिरफ्तार कर लिया गया था और खूब यातनाएं इस दौरान इन्होंने झेली थी. यहां तक कि जतिंद्रनाथ दास की भगत सिंह के साथ भी नज़दीकियां रही और कई जगह इन्होंने भगत सिंह के साथ कंधे से कंधे मिलाकर अंग्रेजों से लड़ने का काम किया था.
भगत सिंह के साथ किया अंग्रेजो का सामना
यहां तक कि यह भगत सिंह के लिए बम बनाने का काम भी करते थे. 14 जून 1929 को जतिंदरनाथ को ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था. जिसके बाद काफी हंगामा भी खड़ा हुआ था, जतिंदर दास को जब गिरफ्तार किया गया. उस समय जेल में इनके साथ काफी बर्बरता की गई थी. 13 सितंबर 1929 का वह दिन आज भी इतिहास के पन्नों में लिखा गया है. जब एक युवा ने मर जाना बहतर समझा, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के सामने झुकना पसंद नहीं किया. आज भी इनके बलिदान की पराकाष्ठा को याद किया जाता है.
अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब
जब जतिन की मृत्यु हुई थी. उस समय पूरा लाहौर गमगीन हो गया था. लाहौर की सड़कों पर उनको श्रद्धांजलि देने वालों की भीड़ उमड गई थी. भले ही जतिंद्रनाथ दास हमारे बीच मौजूद नहीं है, लेकिन इनके आजादी के लिए करें गए कर्तव्य और बलिदान को देश कभी भी नहीं भुला सकेगा.
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