मेहनत और संघर्ष एक ऐसा रास्ता है. जिस रास्ते पर चलकर कोई भी किसी भी मुकाम को हासिल कर सकता है. जिसकी दूरदृष्टि मजबूत हो और मेहनत पर भरोसा हो. वह जिंदगी में कुछ भी करने का हौसला रखता है. इस आर्टिकल में हम आपको राजस्थान की एक बेटी के बारे में बताने वाले हैं. जिसने अपनी मेहनत और संघर्ष की बदौलत गांव की पहली डॉक्टर बनने का कारनामा प्राप्त किया है. सबसे जरूरी बात यह है इस बेटी ने आर्थिक तंगी से जूझते हुए इस मुकाम को हासिल किया है तो चलिए जानते हैं इस बेटी के बारे में.
पिता टेंपो चलाकर करते हैं गुजारा

जिस लड़की के बारे में हम आपसे बात कर रहे हैं. उसका नाम नाजिया है. वह राजस्थान जिला झालावाड़ के पचपहाड़ गांव से संबंध रखती है. उन्होंने हाल ही में नीट की परीक्षा में 668 वी रैंक हासिल की है. जिसकी वजह से अब इनका एडमिशन सरकारी मेडिकल कॉलेज में होगा और यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद निकलेंगी तो एक डॉक्टर के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी होंगी. बता ही इनके पिता इस्लामुद्दीन पेशे से टेंपो चलाते हैं और इकी मां घर-घर जाकर मजदूरी करती हैं. खेतों में मजदूरी करने के बाद भी इन्हें कई बार खाने के लिए भी तरसना पड़ता है पर इनके माता-पिता कहते हैं. हम अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं हमारी बेटी ने इस परीक्षा पास करके हमें गर्व करने का मौका दिया है.
बचपन से प्रतिभाशाली हैं नाज़िया

नाज़िया के माता-पिता बताते हैं. वह हमेशा से ही पढ़ाई को लेकर काफी सजग रही हैं. इन्होंने नौवीं कक्षा दसवीं कक्षा में टॉप किया था और इसी की बदौलत हमें प्रेरणा मिली और हमने भी सोच लिया चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो, लेकिन हम अपनी बेटी को पढ़ा कर रहेंगे. नाज़िया के लिए नौवीं कक्षा में एक साइकिल भी खरीदी गई थी. पहले ये पैदल जाती थी, लेकिन साइकिल की मदद से इनका आना-जाना थोड़ा आसान हो गया. इसके बाद जब दसवीं का रिजल्ट आया तो काफी खुश हुए थे 12 वीं कक्षा में इन्होंने 90 फ़ीसदी अंक हासिल किए थे.
समाज के लोगों ने किया विरोध

भले ही नाज़िया ने अब इस कठिन परीक्षा में अच्छी-खासी रैंक हासिल की है, लेकिन जब इनके पढ़ाने की बातचीत आई तो इनके माता-पिता राजी हो गए थे. लेकिन दूसरे घरवाले काफी नाराज हुए थे और उन्होंने कहा था कि बेटी को पढ़ाना नहीं चाहिए. इनके माता-पिता ने किसी की नहीं सुनी और विरोध होने के बावजूद अपनी बेटी को पढ़ाने पर ध्यान दिया. अब उज्जवल भविष्य को देखते हुए इनके माता-पिता खूब मेहनत कर रहे हैं और किसी भी तरीके से वह अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते हैं. आपको बताते चलें नाज़िया ने नीट की परीक्षा में चौथी बार में सफलता हासिल की है. इन्हें तीन बार निराशा हाथ लगी थी. हालांकि, इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और पचपहाड़ गांव की पहली ऐसी महिला बनी है. जो डॉक्टर बनने के बाद लोगों की सेवा करेंगी.
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