Space Station: साधारण कंप्यूटर के मुकाबले क्वांटम कंप्यूटर्स (Quantum Computers) करोड़ों गुना ज्यादा तेज गति से काम करते है। क्वांटम कंप्यूटर कोई भी ऑपरेशन या सूचना का आदान-प्रदान बहुत ही कम समय में कर सकते है। अगर हम पूरी धरती पर क्वांटम सेंसर्स (Quantum Sensors) लगा दे, तो भविष्य में हम धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति होने वाले हर मिनट के बदलावों का पता लगा सकते है। इसके लिए क्वांटम कंप्यूटर्स या सेंसर्स को आपस में कम्युनिकेट करने के लिए एक तय संचार नेटवर्क की आवश्यकता होती है।
क्वांटम कंप्यूटर की इन खूबियों के कारण इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर इस साल के आखिरी तक एक ऐसा प्रयोग होने वाला है,जिससे कारण भविष्य में वैश्विक स्तर पर क्वांटम कंप्यूटर नेटवर्क को फैलाने में काफी मदद मिल सकेगी। और इस तकनीक को स्पेस इन्टैंगलमेंट एंड एनीलिंग क्वांटम एक्सपेरीमेंट (SEAQUE) का नाम दिया है। इसमें दूध के एक कार्टन के आकार का यंत्र है, जो कि अंतरिक्ष की विपरीत परिस्थितियों में संचार की दो नई तकनीकों का प्रयोग करता है।
इस तकनीक या संचार नेटवर्क की शुरुवाती जांच अंतरिक्ष में होने वाली है। क्वांटम संचार तकनीक के नोड्स, जिसे SEAQUE कहते है, को स्पेस स्टेशन में लगाया जाएगा। ये नोड्स क्वांटम डेटा रिसीव या ट्रांजिट को रिसीव करेंगे। ये सारा कलेक्ट डेटा बिना किसी ऑप्टिकल यंत्रों के सीधे पृथ्वी पर आएगा। यदि यह प्रयोग सफल हो जाता है तो, भविष्य में अंतरिक्ष मे इस तरह के क्वांटन नोड्स इंस्टाल किए जाएंगे। जिससे धरती क्वांटम संचार तकनीक के क्षेत्र में की नई क्रांति आएगी।
क्वांटम नोड्स (Quantum Nodes) के जरिए बहुत ज्यादा दूरी होने पर भी डेटा बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के तेजी से भेजा जा सकेगा। ये डेटा फोटोन्स (Photons) के जरिए रिसीव या ट्रांसमिट होगा। भविष्य में इससे क्वांटम क्लाउड कंप्यूटिंग में काफी ज्यादा मिलेगी। जिसका मतलब ये हुआ कि क्वांटम कंप्यूटर कहीं भी रहे, इसका डेटा क्लाउड में सुरक्षित होगा। इन SEAQUE को स्पेस स्टेशन के बाहर इंस्टॉल किया जाएगा।
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SEAQUE सेल्फ हीलिंग करने कर सकता है। मतलब ये है कि, अगर सूरज के रेडिएशन की वजह से इसे किसी तरह का नुकसान हो जाए तो यह यंत्र उसे खुद ही ठीक कर सकेगा। जिससे कि अंतरिक्ष के प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ये यंत्र ठीक प्रकार से काम करता रहेगा। NASA के JPL में SEAQUE के को-इन्वेस्टिगेटर माकन मोहागेग ने कहा कि, अगर यह दोनों तकनीक सफल होती हैं तो, इससे भविष्य में क्वांटम संचार तकनीक को काफी बढ़ावा मिलेगा। ये प्रोजेक्ट ग्लोबल स्तर पर काम करेगा। इसमें अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर समेत कई और भी देश शामिल हैं।