आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने वाले हैं. जिसने 24 साल की उम्र में एक नौकरी देखी थी. इस नौकरी के लिए इस ने बाकायदा परीक्षा दी थी और इंटरव्यू में अच्छे खासे मार्क्स हासिल किए थे. बल्कि मेरिट में भी टॉप पर रहा था, लेकिन फिर भी उसको नौकरी नहीं दी गई लेकिन अब इसे सालों बाद नौकरी दी गई है और मुआवजा भी दिया गया है. जी हां, यह कहानी गेराल्ड जॉन की है. जिन्होंने 1989 में एक अखबार का विज्ञापन देखा था और उसके बाद उसको देखकर नौकरी के लिए अप्लाई किया था. इन्होंने देहरादून के सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान में अध्यापक की पोस्ट पाने के लिए अप्लाई किया था.
इसके लिए उन्होंने बाकायदा एग्जाम दिया और एग्जाम में अच्छे खासे नंबर हासिल किए थे. साथ ही इंटरव्यू में भी इन्होंने बढ़िया प्रदर्शन किया. यह मेरिट में टॉप पर रहे थे लेकिन इनके पास आशुलिपि ना होने के कारण इन्हें नौकरी देने से मना कर दिया गया. इसके बाद इन्होंने इस पूरे मामले को लेकर कोर्ट में जाने का फैसला लिया उन्होंने कोर्ट में तर्क दिया कि उस विज्ञापन में कहीं भी आशुलिपि का जिक्र नहीं था. यह मामला पिछले कई सालों से कोर्ट में चलता रहा था. आखिरकार इनको 55 साल की उम्र में 30 साल बाद कोर्ट की तरफ से न्याय मिला है. साल 2020 में उत्तराखंड हाई कोर्ट के द्वारा गेराल्ड जॉन के पक्ष में फैसला सुनाया गया था.
साथ ही इन्हें 73 लाख रुपए मुआवजा देने की बात कही गई. वहीं बाकी का मुआवजा उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा दिया जाएगा और इन्हें नौकरी पर भी अब बहाल कर दिया गया है. यह एक विद्यालय में अब वरिष्ठ शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं और एजुकेशनल डिपार्टमेंट में प्राचार्य के तौर पर भी काम कर रहे हैं. अब इस पूरे मामले को देखकर एक कहावत याद आ रही है भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं.
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