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‘श्रीमान! मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया पुरस्कार (पद्म श्री) डाक से भेजें’, हलधर नाग की दर्दनाक कहानी.

Desk by Desk
September 8, 2022
in देश
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‘श्रीमान! मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया पुरस्कार (पद्म श्री) डाक से भेजें’, हलधर नाग की दर्दनाक कहानी.

हलधर नाग के जीवन के बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. हालांकि इस नाम से कई लोग परिचित होंगे तो वहीं कई लोग अपरिचित. जब इन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए नाम चयनित किया गया तब इन्हें दिल्ली आने के लिए खबर दी गई. लेकिन दिल्ली आने के लिए बुलावा के जवाब में हलधर नाग ने जो जुमले कहे हैं उस जुमले को सुनकर सभी हैरान हो गए थे. दिल्ली का बुलावा आने पर हलधर नाग ने जवाब में कहा था कि ‘श्रीमान! मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं, कृपया पुरस्कार (पद्म श्री) डाक से भेजें.

 

 

 

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आपको बता दें कि हलधर नाग को साल 2016 में साहित्य के क्षेत्र में उनके बेहतर योगदान के लिए भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था. आज से लगभग 6 साल पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों इन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था. इस पुरस्कार समारोह में उस वक्त सभी की आंखें इस नजारे को देखकर हैरान हो गई थी जब सफेद धोती के साथ गमछा और बनियान पहने हुए नंगे पैर हलधर नाग पद्मश्री पुरस्कार लेने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास पहुंचे.

 

 

 

 

इस हालत में हलधर नाग को नंगे पैर देखकर सभी की आंखें खुल गई तथा देश के मीडिया को यह बताने के लिए मजबूर कर दिया कि आखिर क्यों एक सक्षम आदमी ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर है. सोशल मीडिया में भी हलधर नाग को लेकर खूब चर्चाएं होने लगी. लोग चर्चाएं करने लगे कि इतने बड़े सक्षम और साहित्य के क्षेत्र में पद्मा श्री से पुरस्कृत व्यक्ति आज इस हाल में है.

 

 

 

 

कवि हलधर नाग कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं. इनका का जन्म 1950 में उड़ीसा के बरगढ़ जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था. 10 साल की उम्र में ही हलधार नाग अनाथ हो चुके थे. माता पिता के जाने के बाद यह बिल्कुल अकेले पड़ गए. कई सालों तक होटलों में जूठे बर्तन धोते रहे. इसके बाद 16 सालों तक स्कूल में रसोईया का काम किया. बैंक से 1000 उधार लेकर स्कूल के पास ही कलम, पेंसिल, कॉपी किताब बेचने लगे. इस दौरान वह हमेशा कुछ न कुछ लिखते रहे. साल 1990 में उन्होंने पहली कविता धोदो बरगच (द ओल्ड बरगद ट्री) लिखी, जो चार अन्य कविताएं के साथ एक पत्रिका में प्रकाशन किया गया था. यहीं से इनकी कविताएं चर्चा में आने लगी थी.

 

 

 

 

 

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