भोपाल: हम जिस समाज में रह रहे हैं उस समाज में पुरानी रूढ़िवादी प्रथाएं वह परंपराएं आज से नहीं बल्कि कई दशकों से चलता आ रहा है जिस कारण हम समाज के डर से, ना चाहते हुए भी कई बार इन रूढ़ीवादी प्रथाओं और परंपराओं को निभाने के लिए विवश हो जाते हैं। पर कुछ लोगों की सोच इतनी ऊंची होती है। कि वे लोग इन रूढ़िवादी प्रथाओं व परंपराओं से कहीं ऊपर उठकर कुछ ऐसा कार्य कर जाते हैं जो हमारे समाज के लिए उदाहरण तो बनता ही है, बल्कि ऐसी ऊंची सोच रखने वाले लोग इंसान की इंसानियत पर नई परिभाषा भी सिखा जाते हैं। * सास ससुर ने मिलकर कि, विधवा बहू की कन्यादान* यह किस्सा ऐसे ही ऊंची सोच रखने वाले दांपत्य जोड़ा सास-ससुर की है। जो कि मध्य प्रदेश के धार जिले के निवासी है। एसबीआई के रिटायर मैनेजर युग तिवारीजी के पुत्र प्रियंक तिवारीजी का देहांत 25 अप्रैल 2021 में हो गया था। इनके बेटे की शादी रिचा नाम की कुशल कन्या के साथ 27 नवंबर 2011 को हुई थी। प्रियंक तिवारीजी भोपाल की नेटलिंक कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर के पद पर कार्यरत थे। साल 2013 में इनके घर एक सुंदर बिटिया का जन्म हुआ, जिसका नाम आन्या तिवारी है यह अभी 9 साल की है। आपदा में प्रियंक तिवारी की मृत्यु हो जाने के बाद इनकी पत्नी रीचा विधवा हो गई, बेटे के गुजर जाने के बाद इस परिवार को गम से उबरने में काफी समय लगा। कुछ समय बाद विधवा रिचा तिवारी के ससुर रिटायर्ड मैनेजर युग तिवारी और इनकी पत्नी जी ने अपनी विधवा बहू व 9 साल की पोती के भविष्य का चिंता करते हुए। अपनी विधवा बहू की दूसरी विवाह करने का फैसला लिया,ताकि विधवा बहू रिचा को पूरी जीवन अकेले ही ससुराल में ना बितानी पड़े और 9 साल की पोती को एक पिता का प्यार मिल सके। इसलिए युग तिवारी और उनकी पत्नी ने अक्षय तृतीया के दिन अपनी विधवा बहू की शादी नागपुर के रहने वाले वरुण मिश्रा से करवा दी। दोनों सास ससुर ने बहू सामान बेटी की कन्यादान अपने हाथों से की।
रिचा का नया ससुराल, नागपुर शहर के हैं दामाद
युग तिवारी जी ने अपनी बहू के लिए एक योग्य वर ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। युग तिवारी जी अपने दामाद वरुण जी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वरुण महाराष्ट्र के नागपुर शहर में रहते हैं। दामाद वरुण एक हॉस्टल संचालक व प्रॉपर्टी ब्रोकर हैं। युग तिवारी जी ने वरुण को बताया, कि रिचा तिवारी उनकी बेटी नहीं बहू है। वरुण को रिचा काफी पसंद थी। उन्होंने शादी के लिए हां कर दी परंतु। इतने बड़े गम से गुजर रही रिचा को पहले यह शादी सही नहीं लग रही थी। वे पूरी जिंदगी अपने सास-ससुर के साथ ही बिताना चाहती थी। परंतु सास ससुर ने बेटी समान बहू को शादी के लिए समझाया भी और मनाया भी और फिर रिचा और वरुण का विवाह करा दिया गया।
सास ससुर ने उपहार के तौर पर अपनी विधवा बहू को बंगला दिया
रिटायर मैनेजर युग तिवारी के बेटे प्रियंक तिवारी ने अपनी मृत्यु से पहले नागपुर में एक बंगला खरीदा था। जिसे युक्त तिवारी जी ने अपनी बेटी रिचा और दामाद वरुण को शादी में उपहार के तौर पर देने का फैसला लिया। शादी के बाद रिचा ने फैसला किया कि वह हमेशा अपने सास-ससुर को अपना माता-पिता मानेगी। वह अपने ससुराल मां समान सास से व पिता समान ससुर से मिलने आती रहेंगी।रिचा के इसफैसले पर दोनों पक्षों ने सहमति जताई।
सास-ससुर ने मिलकर रूढ़िवाद से हटकर इंसानियत की नई परंपरा बनाई
युग तिवारी जी ने विधवा प्रथा की सोच पर अंकुश लगाते हुए, इन्होंने अपनी विधवा बहु सामान बेटी रिचा की दूसरी विवाह करा कर, इन्होंने अपनी विधवा बहू जैसी बेटी को फिर से कई रंगों में रंगने का व खुशियों से अपने आंचल को भरने का सजने-सवरने का व रिचा के आंखों में आंसू के बजाय खुशियां भरने का मौका देकर। युग तिवारी जी ने हमारे समाज को रूढ़िवाद विधवा प्रथा के बंधन से हर एक नागरिक की सोच पर विधवा प्रथा को लेकर इन्होंने अंकुश लगा दिया है। रूढ़िवाद प्रथाओं को निभाने के बजाय इंसान के लिए इंसानियत की परंपरा बनाएं।
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