एक समय हुआ करता था जब महिलाओं के बारे में कहा जाता था कि महिलाएं घर के अंदर का काम करेंगी तो पुरुष बाहर के काम को करेंगे. लेकिन अब समय बदल चुका है और महिलाएं भी धीरे-धीरे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. ना सिर्फ आगे बढ़ रही हैं बल्कि हर काम में पुरुषों से भी कई मामले में आगे निकल जाती हैं. आज के इस पोस्ट में हम आपको एक ऐसी चाची की कहानी बताने वाले हैं, जिसने आज से सालों पहले गांव में ही अचार बेचना शुरू किया था और उसकी मेहनत के दम पर आज उसका अचार विदेशों में भी सप्लाई किया जाता है. ना सिर्फ इस महिला ने अपने आचार के बिजनेस को देश और दुनिया में पॉपुलर किया है. बल्कि कई लोगों को रोजगार देने का काम भी किया है. आइए जानते हैं इसी महिला के संघर्ष की कहानी के बारे में.
मिलिये 65 साल की अचार वाली चाची से
हम बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक छोटे से गांव आनंदपुर की रहने वाली राजकुमारी देवी के बारे में बात कर रहे हैं. राजकुमारी देवी को आज किसान चाची के नाम से जाना जाता है लेकिन किसान चाची’ बनने के लिए राजकुमारी देवी ने बहुत संघर्ष किया है. न सिर्फ संघर्ष किया है बल्कि इन कठिन यात्राओं को भी झेला भी है. राजकुमारी देवी बताती हैं कि बचपन में ही जब वह दसवीं क्लास में थी. तब उनकी शादी कर दी गई थी इनके पिता शिक्षक थे तो यह भी शिक्षक बनना चाहती थी लेकिन सपना शादी होने की वजह से उस समय ही टूट गया था. उन्होंने सोचा कि शायद ससुराल मैं पढ़ने का मौका मिले. लेकिन इनकी सास ने इससे कतई इंकार कर दिया. अब इनकी पढ़ाई के रास्ते तो बंद हो चुके थे लेकिन इन्हें अपने बच्चों के फ्यूचर की चिंता होने लगी थी और उसी दौरान इनके दिमाग में बिजनेस करने के लिए तरह-तरह के आईडिया आते थे लेकिन पैसों की किल्लत होने की वजह से आईडीयाज सिर्फ आईडिया ही बनकर रह जाते थे.
और फिर आया अचार बेचने का आइडिया
राजकुमारी देवी ने ठान तो लिया था कि उन्हें कुछ बड़ा करना है. लेकिन बड़ा क्या करना है. यह उनके दिमाग में नहीं था लेकिन एक दिन उनके दिमाग में आया कि वह अपने घर पर आचार बनाकर गांव-गांव बेच सकती हैं उन्होंने नहीं सोचा था कि जल्द ही उनका यह बिजनस बड़े स्तर पर पहुंच जाएगा. राजकुमारी देवी ने साल 2002 के आस पास वकायदा अचार बनाने के लिए एक रिसर्च सेंटर से ट्रेनिंग ली थी. इसके बाद राजकुमारी देवी ने घर पर आचार बचाना बनाना शुरू किया और बेचना शुरू कर दिया. लेकिन उस समय एक समस्या थी समस्या थी कि यह ट्रांसपोर्ट से अचार बेचने जाती थी कई बार इन्हें बस मिलती थी तो कई बार इन्हें दूसरे वाहनों से जाना पड़ता था. जिसकी वजह से इन्हें आने जाने में काफी परेशानी होती थी.
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अचार बेचने के लिए उठाई साइकिल
सरैया, मुजफ्फरपुर (बिहार) के आनंदपुर गांव में नारी शक्ति की अनुपम उदाहरण पद्मश्री किसान चाची राजकुमारी देवी जी से भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री @JPNadda ने मुलाकात की। pic.twitter.com/6OCbtyludS
— BJP (@BJP4India) September 12, 2020
उस समय इन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट से अचार बेचने जाने के लिए काफी परेशानी होती थी. इसके बाद इन्होंने एक साइकिल खरीदी और साइकिल चलाना सीखा. इसके बाद यह साइकिल पर एक झोले में 40- 50 आचार के पैकेट रखती और गांव-गांव निकल जाती. उस समय इन्हे गलत नजर से भी देखा जाता था लेकिन आज इनकी अलग ही वेल वैल्यू बन चुकी है. और इन्हें हर कोई सम्मान देता है. धीरे-धीरे राजकुमारी देवी के अचार की चर्चा गांव-गांव होने लगी थी और उनका आचार इस कदर पसंद किया जाने लगा कि कुछ ही सालों में उनके आचार की लोकप्रियता बहुत हो गई.
ऐसे मिला किसान चाची नाम
राजकुमारी देवी बताती हैं इन्हें अचार की वजह से काफी लोकप्रियता तो मिल ही गई थी इसके साथ ही साल 2007 में इन्हें किसान श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था और इसी दौरान इन लोगों ने “किसान चाची” नाम दे दिया था. जिसके बाद से आज तक यह किसान चाची के नाम से ही पॉपुलर है. वही बता दें, इनको कई बार बिहार सरकार भी सम्मानित कर चुकी है. साल 2006 में इन्हें लालू प्रसाद यादव ने सम्मानित किया था.
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