Basoda or Sheetala Ashtami 2022: आज हम बात करने वाले है, बासोदा या शीतला अष्टमी की, हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। इसे बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है। होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला को अष्टमी के दिन मीठे चावल का भोग लगाया जाता है। जो कि गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं। कहते है कि मां शीतला की विधि-विधान के साथ पूजा करने सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है, तथा घर ने सुख शांति बनी रहती है।
इस बात शीतला अष्टमी 4 अप्रैल को पढ़ने वाली है। मां शीतला को इस दिन बासी खाने का भोग लगाया जाता है, और उस भोग को खुद भी प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। लोग इस दिन उपवास रखते हैं। इस दिन लोग घरों में चूल्हा नहीं जलाते क्योंकि इस खास पर्व पर बासी भोजन करने से माता शीतला का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आखिर क्यों लगाते है, बासी खाने का भोग
माता शीतला को भोग के मीठे चावल और घी अर्पित किया जाता है। पर ये भोग एक दिन पहले भोग तैयार कर लिया जाता है। क्युकी शीतला अष्टमी को घर में चूल्हा नहीं जलाते। कहते है, कि शीतला अष्टमी के बाद से बासी भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके बाद से गर्मियां शुरू हो जाती हैं, और गर्मियों में बासी खाना खाने से बीमारियों का शिकार होने का खतरा रहता है।
शीतला अष्टमी व्रत का महत्व
ऐसी मान्यता है, कि शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला की विधि विधान पूजा करने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
माता शीतला के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला कहा गया है। व्रत करने से खास तौर पर चेचक और खसरा जैसे रोगों का व्यक्ति पर खतरा नहीं रहता। मान्यताओं के अनुसार माता शीतला को ठंडी चीजें पसंद है, इसलिए उन्हें इस दिन उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है।
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शीतला माता की व्रत कथा
किसी गावं में एक बूढ़ी औरत रहती थी। अचानक से एक दिन पूरे गांव में आग लग गई और पूरा गांव आग की चपेट में आकर जलकर राख हो गया। लेकिन सिर्फ वो एक बूढ़ी औरत और उनका घर बच गया। सभी लोग ये देखकर आश्चर्यचकित हो गए, कि पूरे गांव में केवल एक बूढ़ी औरत और उसका घर कैसे बच गया। सभी उस औरत के पास गए और उससे पूछा, कि ये कैसे हुआ, तब उस औरतों ने बताया कि वह चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन व्रत रख शीतला माता की पूजा करती हैं। वह इस दिन बासी भोजन करती हैं, और इस त्योहार पर अपने घर में चूल्हा नहीं जलातीं। यही वजह है, कि शीतला माता की कृपा से उनका घर और वह बच गई । कहते हैं, तभी से माता के इस चमत्कार को देख पूरा गांव माता शीतला की पूजा करने लगा।