जहां पहले छोटी मोटी पतली गली गूचों में हमें जाने के लिए किसी तरह का कोई आसान साधन नहीं था. वहीं अब ई-रिक्शा ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को काफी आसान कर दिया है. हम कभी भी किसी समय कहीं भी ई-रिक्शा से अपने सफर को आसान बना सकते हैं. वहीं चालकों के लिए भी ई रिक्शा के आ जाने से उनके जीवन में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. ई- रिक्शा को देश के कोने कोने तक पहुंच जाने से आम जनता को काफी सहूलियत हो रही है. आपको बता दें कि ई-रिक्शा को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं कोई इसे टुकटुक रिक्शा तो कहीं इसे ई-रिक्शा कह कर बुलाते हैं.
ई-रिक्शा की अविष्कार लोगों की जिंदगी को काफी आसान कर दिया है. चाहे घर से बाजार जाना हो या कुछ दूरी पर अपने परिवार वालों के पास, सबसे आसान ई-रिक्शा होती है. रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे सफर को आसान करने के लिए इन सब के पीछे इंजीनियर विजय कपूर का बहुत बड़ा हाथ है. इन्होंने सिर्फ सफर करने वालों को ही नहीं बल्कि सारथी के जीवन को भी काफी आसान कर दिया. एक खबर के मुताबिक विजय कपूर ने ई-रिक्शा लॉन्च करने से पहले कई रिक्शे वालों से बात की थी. उसके बाद उन्होंने एक ऐसा रिक्शा बनाने का निर्णय लिया जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सारथी को इसमें कम मेहनत करना पड़े.
आईआईटी कानपुर से इंजीनियर बने कपूर ने Saera Electric Auto Private Limited की स्थापना की. उसके बाद साल 2012 में उन्होंने पहली बार देश की सड़कों पर मयूरी ई रिक्शा को दौड़ाया. विजय कपूर बताते हैं कि ई-रिक्शा का मैन्युफैक्चरिंग में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था. कई तरह के कठिनाइयों का सामना करने के बाद उन्हें एक मॉडल तैयार करने में लगभग डेढ़ साल लग गए. वह बताते हैं कि उस समय ई रिक्शा का टायर बनाने वाला भी कोई नहीं था. इसलिए उन्होंने खुद ई-रिक्शा का टायर बनाया. वहीं दूसरी परेशानी इसमें इस्तेमाल होने वाली बैटरी की थी जो भारत में नहीं मिलते थे. इसलिए उन्हें थर्ड पार्टी वेंडर से बैटरी खरीदने पड़ते थे.
विजय कपूर को पहला ई-रिक्शा बेचने में 8 महीने का समय लग गया. एडवर्टाइजमेंट करने के लिए वह खुद अपनी पोती को ई रिक्शा में बैठा कर स्कूल छोड़ने जाते थे. 8 महीने बाद एक बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे के लिए ई रिक्शा खरीदी वह भी आधे दाम पर. धीरे धीरे समय गुजरने पर कई राज्यों में ई-रिक्शा को हरी झंडी मिल गई.
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