हमारे देश के लोगों को ऐसा लगता है कि केवल अच्छी जॉब पाने के लिए ही लोगों को पढ़ना चाहिए. यही कारण है कि जब मैसूर के मूर्तिकार ने अपना जॉब छोड़कर मूर्ति बनाने का फैसला किया, तो ना केवल उनके परिवार वाले बन के उनके पड़ोस वाले भी उनसे नाराज हो गए थे. लोगों का ऐसा मानना था कि, मूर्ति बनाकर किया मिलेगा जबकि अरुण एक अच्छे पद पर नौकरी कर रहे थे. एक अच्छे एवं अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ने के बाद अरुण योगीराज ने यह फैसला लिया. आपको बता दें कि इन दिनों अरुण योगीराज का ना केवल नाम बल्कि उनका सम्मान भी हो रहा है. अरुण योगीराज का सम्मान होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि, उन्होंने इंडिया गेट की शान बढ़ा दी है.

इंडिया गेट के सामने बनाई 28 फीट की मूर्ति
नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे देश के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो किसी परिचय की मोहताज नहीं. 8 सितंबर को इंडिया गेट के सामने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फुट की मूर्ति बनाई गई. जिसका विवरण श्री नरेंद्र मोदी ने किया. आलीशान मूर्ति बनाने वाले कोई और नहीं बल्कि मैसूर के अरुण योगीराज हैं, जो पिछले कई सालों से मूर्ति बना रहे हैं. आपको बता दें कि जिस पत्थर से सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति बनाई गई है, उस पत्थर का नाम ग्रेनाइट है. इस पत्थर को 100 फुट लंबे 140 पहियों वाले ट्रक पर 1,665 किलोमीटर की दूरी तय कर तेलंगाना के खम्मम से दिल्ली लाया गया.

मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज का कहना है कि, “अभी तक मैंने 1000 से अधिक मूर्तियां बनाई है लेकिन इतना प्यार और रिस्पेक्ट मुझे कभी नहीं मिला”. मालूम हो कि इतना सम्मान और नाम होने के बाद अरुण काफी भावुक हो गए हैं. उन्होंने कभी ऐसा सोचा नहीं था कि, वह अपने जीवन में इस मुकाम तक पहुंच पाएंगे.

मीडिया से बात करते हुए अरुण कहते हैं कि, “भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करने’ के उद्देश्य से मूर्ति का भव्य निर्माण, योगीराज और उनकी टीम के लिए खून, पसीने और आंसुओं की एक लंबी यात्रा है. लेकिन उनके लिए, इसका पूरा होना 2008 में एक कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ने और अपनी माँ की शुरुआती आपत्तियों के बावजूद खुद को मूर्तिकला के लिए समर्पित करने को सफल बनाता है. हमारा परिवार पिछले 225 साल से मूर्तिकला से जुड़ा है. हमने सैंकड़ों मूर्तियां बनाईं हैं. लेकिन सबसे बड़ा सम्मान सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति बनाने के बाद मिला है”.
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