प्रेम गणपति : कहते हैं जो इंसान अपनी परिस्थितियों से हार मान लेता है. वह जिंदगी में भी हार जाता है और जो इंसान अपनी परिस्थितियों से लड़कर जीत जाता है. वह जिंदगी में सफलता हासिल कर लेता है. ऐसी ही कुछ प्रेरणा देने वाली कहानी है. डोसा प्लाज़ा के मालिक प्रेम गणपति की. आज भले ही प्रेम गणपति करोड़ों का व्यापार करते हैं लेकिन एक समय पर इन्होंने बर्तन धोए थे और महज डेढ़ सौ रुपए में नौकरी करते थे. यहां तक कि उन्होंने ठेला लगाने का काम भी किया था. आज के इस पोस्ट में हम आपको इन्हीं की संघर्ष भरी कहानी से रूबरू कराने वाले हैं.
आर्थिक तंगी के कारण छूट गई पढ़ाई
प्रेम गणपति बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे और यह आगे पढ़ लिखकर कुछ बड़ा हासिल करना चाहते थे लेकिन कहते हैं ना जब किसी की परिस्थिति खराब हो तो उसकी मदद करने वाले लोग भी सामने नहीं आते हैं. ऐसा ही इनके साथ हुआ और बचपन में ही इनकी पढ़ाई आर्थिक तंगी की वजह से छूट गई थी और बचपन में ही गणपति को अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए कंधो पर जिम्मेदारी लेकर कमाने के लिए निकलना पड़ा था और दर-दर भटकने के बाद गणपति को ढाई सौ महीना नौकरी मिल गई थी लेकिन गणपति तो इससे भी कुछ बड़ा करना चाहते थे. गणपति के लिए यह छोटी सी नौकरी ही जीविका बन गई थी लेकिन के जीवन में एक समय आया जब इनके परिचित ने इनसे कहा कि वह मुंबई जाकर अच्छा खासा पैसा कमा सकता है. लेकिन यहां एक दिक्कत थी और दिक्कत थी कि इनके घर वाले इन्हे मुंबई भेजने वाले नहीं थे लेकिन किसी तरह यह मुंबई पहुंच गए और यहां पर इनके परिचित ने ही इनके साथ धोखा कर दिया और 200 रुपए लूट लिए, इनके पास घर लौटने के लिए भी पैसे नहीं थे और यह वही बांद्रा में फंस गए. इसके बाद यही से इनके संघर्ष का सफर शुरू हुआ.
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फिर करने लगे डेढ़ सौ रुपए महीने नौकरी
अब गणपति मुंबई में फंस चुके थे लेकिन इन्हें आगे का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. यही कारण है. ये वहीं एक रेस्टोरेंट में नौकरी करने लगे और इनको वहां पर डेढ़ सौ रुपए प्रतिमाह मिलते थे और उनको काम करना पड़ता था बर्तन धोने का. ये यहां पर बर्तन धोते थे उसके अलावा कई और सारे काम करते थे लेकिन एक चीज जो वहां इनके साथ अच्छी हुई थी वह इनको रेस्टोरेंट के मालिक ने सोने के लिए जगह दे दी थी. जिसके बाद वजह से इन्हें छत के लिए भटकना नहीं पड़ा था. साल 1990 में यह 150 रुपये महीना नौकरी करते थे लेकिन उनको भी नहीं पता था कि 2 साल बाद उनकी किस्मत बदलेगी और वह आगे चलकर करोड़पति बन जाएंगे.
फिर शुरू हुआ कामयाबी का सफर
साल 1992 गणपति के लिए सौभाग्यशाली साल था. इस साल उन्होंने नौकरी से बचाए हुए पैसों से वही इडली और डोसा का काम शुरू किया था और किराए पर दुकान ली थी. इसके बाद उन्होंने और भी कई सामान खरीदे थे वहीं कुछ समय बाद इन्होंने अपने दो भाइयों को भी मुंबई बुलाकर कारोबार में शामिल कर लिया था. धीरे-धीरे एक समय आया जब यह इस काम से ही 20,000 महीने कमाने लगे. इनके डोसा की खास बात थी कि उसका स्वाद नेचुरल होता और लोगों की यहां पर भारी मात्रा में भीड़ लगती थी. और फिर साल 1997 आया इस साल उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर डोसा प्लाजा की शुरुआत की थी. इसके लिए उन्होंने 5000 महीना किराए पर एक दुकान ली और उसमें 50000 की लागत लगाई. इसके साथ ही 2 कर्मचारियों को इन्होंने यहां काम रखा अब धीरे-धीरे इनका यह डोसा प्लाजा पॉपुलर होने लगा था और देखते ही देखते इन्होंने देश के कई बड़े शहरों में डोसा के आउटलेट्स खोल दिए थे. वहीं इनको 105 तरह की वैरायटी के डोसा बनाने का भी अनुभव है. यही कारण है आज इनकी देशभर में तो पहचान है ही लेकिन विदेशों में भी इन्होंने तगड़ा सिक्का जमा लिया है और यह अपने बिजनेस के दम पर लाखों रुपए महीना कमाते हैं.
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