समाज का सबसे घिनौना प्रथा दहेज ने ना जाने कितनों की जिंदगियां उजाड़ दी है. लालच और लोभ ने इस समाज को दहेज के नाम पर भिखारी बना दिया है. समाज में पल रहे विशाल बुद्धिजीवी भी उस समय अपना आदर्श को बैठते हैं, जब बात शादियों में दहेज न लेने की होती है. इस घिनौनी प्रथा के वजह से गुजरात के रहने वाली कोमल के जीवन को नष्ट कर दिया था. लेकिन कोमल की मजबूत इच्छाशक्ति ने उन्हें बिखरने से बचा लिया. अपने दृढ़ संकल्प और मजबूत जज्बे की वजह से आज वह यूपीएससी में 591 वां रैंक ला कर अपने सपनों को साकार करते हुए आई आर एस ऑफिसर बन गई है.
यूपीएससी 2013 की बैच की आईआरएस ऑफीसर कोमल गणात्रा भी दहेज प्रथा के द्वारा प्रताड़ित की गई एक आम लड़की थी. कोमल के अंदर अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सरकारी अफसर बनने का सपना था. इसलिए वह इसके लिए अधिकतर समय तैयारियों में लगी रहती थी. 1982 में जन्मी कोमल गुजरात के एक छोटे से गांव अमरेली की रहने वाली है. इन्होंने अपनी पढ़ाई गुजराती भाषा में की. अपनी आगे की पढ़ाई के लिए तीन तरह के यूनिवर्सिटी को चुनी थी. जहां से वह अलग-अलग भाषाओं में पढ़ाई पूरी की. लेकिन उनके जीवन में एक समय ऐसा आया जब वह अंदर से पूरी तरह टूट गई.
कोमल को बचपन से ही कुछ बड़ा करने का जुनून और जज्बा था. लेकिन उनका यह जुनून तब टूट गया जब उनकी शादी पढ़ाई के दौरान 26 वर्ष में कर दी गई. एन आर आई लड़के से कोमल की शादी साल 2008 में कर दी गई. लड़का न्यूजीलैंड में रहता था. वहीं कोमल उस समय यूपीएससी की प्री और मेंस एग्जाम क्वालीफाई कर चुकी थी. लेकिन शादी को लेकर घर वालों ने तथा ससुराल वालों ने इंटरव्यू देने से मना कर दिया. यहीं से कोमल की जिंदगी में भूचाल जैसी स्थिति आ गई. ससुराल वाले अक्सर कोमल को दहेज के लिए प्रताड़ना किया करते थे. इस मामले में कोमल के पति भी साथ नहीं देते थे.
कोमल अनजाने में दहेज लोभी के चंगुल में फंस गई थी. शादी के 15 दिन भी नहीं हुए थे कि ससुराल वालों ने उन्हें टॉर्चर करना शुरू कर दिया. उधर कोमल के पति भी विदेश चले गए जो दोबारा कभी लौटकर कोमल के पास नहीं आए. कोमल ने उन्हें ढूंढने की काफी प्रयास की मगर कामयाब नहीं हुई. उसके बाद वह ससुराल से अपने मायके वापस आ गई. लेकिन यहां भी लोगों के ताने सुन सुन कर परेशान हो गई. तानो ने कोमल को इतना परेशान किया कि वह उस गांव से बाहर कहीं दूसरे गांव में जाने पर मजबूर हो गई. जहां इंटरनेट की कोई सुविधा नहीं ना ही वहां अंग्रेजी अखबार आते थे. इसी हालत में वह एक बार फिर से तैयारियों में जुड़ गई. लेकिन लगातार तीन बार असफलता मिली. चौथे प्रयास में 591 वां रैंक हासिल हुआ जिससे वह आई आर एस ऑफिसर बन गई.
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